प्रमेन्द्र मोहन :–
एक और प्रेमकहानी और एक बार फिर लड़की नायिका, प्रेमी नायक और लड़की का पिता विलेन। लड़की का पिता क्या भाई भी विलेन और मां वैम्प, जबकि ससुर जी साक्षात देवतुल्य स्नेह बरसाते हुए और पति तो खैर परमेश्वर होता ही है। ये सीन घंटों एक चैनल पर अवतरित रहा, इस तरह की कहानी में वो कशिश होती है कि मिथुन-पद्मिनी कोल्हापुरे जैसे औसत कलाकारों की फिल्म प्यार झुकता नहीं भी सुपरहिट हो गई थी, सैंकड़ों फिल्में इस थीम पर बन चुकी हैं और सैंकड़ों बार विलेन बना बाप इसी सोच में हार्ट अटैक या खुदकुशी करके मर गया कि वो बाप से विलेन बन कैसे गया?
बेचारे मिश्रा जी की जमाने में विधायकी की धौंस थी, बेटी ने परिवार का पोस्टर निकाल दिया। बड़ा चले थे समझाने कि बिटिया रानी, मेरी लाडो सोच-समझकर फैसला ले, हम तेरे दुश्मन नहीं हैं, बाप हैं, पाला है, पोसा है, लेकिन ये भूल गए कि बेटी अठारह साल की हो चुकी है और अब कानूनन उसे अपनी ज़िंदगी के फैसले लेने का अधिकार है।औकात में तब आए, जब बेटी ने वीडियो बनाकर मुनादी पिटवा दी कि बाप कसाई है, जान के पीछे पड़ा है, सबने हाथों हाथ बाप की सताई बेचारी प्रेमदीवानी की जान बचाने की ठान ली, वीडियो वायरल हुआ, जमाने ने संज्ञान लिया, मीडिया ने सामाजिक दायित्व के प्रति जिम्मेदारी निभाई और अब कोई अनहोनी हुई तो विधायक की जान नहीं बचने वाली। साक्षी को चाहिए था कि सुरक्षा सुनिश्चित होने की इस गारंटी पर संतोष करती, मकसद पूरा हो चुका था, बाप को बख्श देती, लेकिन दिल है कि मानता नहीं तो बदलापुर बसा डाला।
अब आगे क्या? जब पिता ने चैनल पर, ऑन रिकॉर्ड, ऑफ रिकॉर्ड बोल दिया कि बेटी बालिग है, जहां रहे खुश रहे, उन्हें अब कोई लेना-देना नहीं तो काहे को रिकॉर्ड की सुई घसीट रही है, पति के साथ घर बसाए, अब क्या चाहिए बाप से? जिस तरह कानून ने लड़की को खुद के फैसले का हक दिया है, उसी तरह उसके पिता को भी उसी कानून से ये हक है कि वो जिससे चाहे रिश्ता रखे, जिससे चाहे न रखे, इसमें दूसरे को दखलंदाज़ी का क्या हक है? जब पिता खुद ये कह चुका है कि उसकी ओर से बेटी और उसके पति को कोई खतरा नहीं है तो उसे और परेशान करने की ज़रूरत क्या है?अगर राजेश मिश्रा और उनकी पत्नी आत्महत्या कर लेते हैं, जैसा उन्होंने कहा है कि परेशान किया गया तो ऐसा कर सकते हैं, क्या उस सूरत में इन दो मौत की जिम्मेदारी न्यूज़ चैनल लेंगे या साक्षी लेगी?
क्या ये साबित हो चुका है कि राजेश मिश्रा अपनी बेटी और उसके पति को जान से मारना चाहते हैं और इसके लिए अपने लोग उनके पीछे छोड़ रखा है? अगर किसी की बेटी अपने से काफी ज्यादा उम्र के लड़के से शादी कर रही है तो क्या बाप को समझाने का हक नहीं है? जिस लड़के की किसी और लड़की से सगाई एक बार टूट चुकी थी उस लड़के से बेटी की शादी होते देख कोई पिता आंखें बंद कर सकता है? जो लड़की ये आरोप लगा रही है कि उसे घर से निकलने नहीं दिया जाता था, वो लड़की बिना घर से निकले प्रेमी के साथ शादी तक कर लेती है, ये विलेन बाप होने देता?
सारे नाते-रिश्तेदार मिश्रा जी के लाड़-प्यार को बेटी के कदम का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और बेटी बाप को कसाई बता रही है, ये अदभुत है, एक बाप की मनोस्थिति को समझने की कोशिश भी की जानी चाहिए, लेकिन इसमें वो अपील नहीं, जो एक युवा नायिका के आंसूओं में है, तो इस पहलू को इग्नोर मारते चलिए। सामाजिक पहलू ये कि एक पिता के लिए अपनी औलाद के इस तरह के फैसलों को एकदम से पचा पाना आसान नहीं होता, वक्त लगता है। हम जिस समाज में रहते हैं, वो सिद्धांतवादी-आदर्शवादी समाज नहीं है और हमें रहना भी इसी समाज में होता है। हर पिता यही चाहता है कि उसके बच्चे ऐसा कोई काम न कर बैठें जिससे उनका भविष्य खराब हो, राजेश मिश्रा को अगर ये लगा कि उनकी बेटी का ये कदम गलत है तो हम कौन होते हैं कि उन्हें इसे जबरन सही मानने पर विवश करें? इसी तरह अगर साक्षी को लगता है कि उसका कदम सही है तो हो सकता है वो भी सही हो. वक्त खुद तय कर देगा कि सही कौन औऱ गलत कौन और जो वक्त का फैसला होगा उसे दोनों को ही मानना होगा।
फिलहाल तो उचित यही है कि राजेश मिश्रा अगर साक्षी के बारे में कुछ भी बात करना नहीं चाहते तो उनके इस फैसले का सम्मान किया जाए और साक्षी के लिए भी यही उचित होगा कि अगर उसके पिता उससे रिश्ता नहीं रखना चाहते तो जहां है वहां खुश रहे, जितना बाप का बिगाड़ सकती थी, बिगाड़ चुकी, अब बख्श दे, बहुत बड़ा उपकार होगा। प्रेमविवाह कोई अनोखी बात तो है नहीं, होता रहा है, होता रहेगा, तो एक और सही, साक्षी ने कोई इतिहास तो रचा नहीं है, कोई क्रांति तो की नहीं है, जो इसे राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाया जाए और साक्षी को इसकी नायिका। बहुत रायता फैल चुका, अब समेटिए, विलेन ही सही, था तो बाप ही और दुश्मन परिवार ही सही, रही तो आप भी वहीं हैं, इसलिए और छीछालेदर न करें, कीचड़ में पैर पटकने से कीचड़ अपने चेहरे पर ही पडता है, अभी ताजा-ताजा जवानी है, ये गूढ़ बातें उमर के साथ समझ पाएंगी, इसलिए अभी तो अपने-अपने घर रहिए, मस्त रहिए और दूसरों को भी चैन से रहने दीजिए…शुभ रात्रि
प्रमेन्द्र मोहन जी की फेसबुक वाल से।