सुशील मालवीय:-
क्या आप जानते हैं की कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) क्या है जब से कंप्यूटर का आविष्कार हुआ है तब से इंसानों ने इसका इस्तमाल काफी बढ़ा दिया है. मनुष्यों ने इन मशीनों की क्षमता को काफी हद तक बढ़ा दिया है जैसे की उनकी स्पीड, उनका साइज और उनकी कार्य करने की क्षमता जिससे की ये हमारे काम बहुत ही कम समय में कर सकें जिससे की हमारे समय की बचत होगी ।
आपने भी शायद ये लक्ष्य किया होगा की आजकल जिसे देखो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बस तारीफ किये जा रहा है ।
एक नया डोमेन अब सामने आया है जिसे लोग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नाम से जानते हैं जो की मूल रूप से कंप्यूटर साइंस का ही भाग है और जिसका मुख्य काम ये है की ऐसे इंटेलीजेंट मशीन बनाएं जो की मनुष्य के जैसे ही बुद्धिमान हो और जिसकी अपनी ही निर्णय लेने की क्षमता हो. इससे ये हमारे काम और भी आसान कर देंगे।
(AI) यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या हिंदी में इसका अर्थ है कृत्रिम दिमाग। ये एक ऐसा simulation है जिससे की मशीनों को इंसानी intelligence दिया जाता है या यूँ कहे तो उनके दिमाग को इतना उन्नत किया जाता है की वो इंसानों के तरह सोच सके और काम कर सके। ये खासकर कंप्यूटर सिस्टम में ही किया जाता है। इस प्रक्रिया में मुख्यत तीन प्रोसेस शामिल है और वो हैं पहले लर्निंग मशीनों के दिमाग मे इंफॉर्मेशन डाला जाता है और उन्हें कुछ प्रोटोकॉल्स/ रूल्स भी सिखाये जाते हैं जिससे की वो उन प्रोटोकॉल्स का पालन करके किसी दिए हुए कार्य को पूरा करे| दूसरा है Resoning (इसके अंतर्गत मशीनों को ये instruct किया जाता है की वो उन बनाये गए प्रोटोकॉल्स का पालन करके रिजल्ट्स के तरफ अग्रसर हो जिससे की उन्हें लगभग या definite conclusion हासिल हो) और तीसरा है Self-Correction.
अगर हम AI की पर्टीकूलर एप्लीकेशन की बात करें तो इसमें एक्सपर्ट सिस्टम स्पीच recogination और मशीन विजन शामिल हैं। AI या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को कुछ इस प्रकार से बनाया गया है की वो इंसानों की तरह ही सोच सके, कैसे इंसानी दिमाग किसी भी चीज या काम को पहले सीखता है, फिर उसे करता है, सोचता है की क्या यह करना उचित होगा और फिर उसे कैसे करते है, उसके बारे में सोचता है| उसी प्रकार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भी मशीनों को इंसानी दिमाग की सारी विसेश्तायें दी जाति हैं जिससे वो बेहतर काम कर सके |
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में सबसे पहले John McCarthy ने ही दुनिया को बताया। वो एक अमेरिकन कंप्यूटर साइंटिस्ट थे, जिन्होंने सबसे पहले इस टेक्नोलॉजी के बारे में सन 1956 में the Dartmouth Conference में बताया | आज ये एक पेड़ की तरह बहुत ही बड़ा हो गया है और सारी रोबोटिक्स प्रोसेस ऑटोमेशन से एक्चुअल रोबोटिक्स तक सभी चीज़ें इसके अंतर्गत आती हैं | विगत कुछ वर्षों में इसने बहुत पब्लिसिटी हासिल कर ली है क्यूंकि इसमें बिग डाटा की टेक्नोलॉजी भी शामिल हो चुकी है और इसकी दिन-बदिन बढती हुई स्पीड साइज और वैरायटी से बहुत से कंपनीज इस टेक्नोलॉजी को अपनाना चाहते हैं. अगर में AI की बात करूँ तो इसकी मदद से कंपनीज को कम समय में अपने डाटा के ऊपर ज्यादा insight प्राप्त होती है।
जब इन्सान कंप्यूटर सिस्टम की असली ताकत की खोज कर रहा था, तब मनुष्य की अधिक जानने की इच्छा ने उसे ये सोचने में बाध्य किया की क्या मशीन भी हमारी तरह सोच सकते हैं ?और इसी तरह ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शुरुआत हुई जिसका केवल एक ही उद्देश्य था की एक ऐसी इंटेलीजेंट मशीन की संरचना की जाये जो की इंसानों की तरह ही बुद्दिमान हो और हमारे ही तरह ही सोच सके।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लक्ष्य—
एक्सपर्ट सिस्टम बनाना − कुछ ऐसे सिस्टम्स को बनाना जो की इंटेलीजेंट व्यवहार प्रदर्शन कर सके, जो की मनुष्य की भांति सीख सके और समझा सके।
मनुष्य की खूबियों को मशीन में लागू करना – ऐसे सिस्टम बनाना जो की इंसानों की तरह ही समझ, सोच, सिख, और व्यवहार कर सकें।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रकार—
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बहुत से प्रकारों में भागीत किया जा सकता है, लेकिन उनमें से जो सबसे मुख्य हैं वो हैं
1) वीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
2) स्ट्रांग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
विक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: –
इस प्रकार के AI को नेरो AI भी कहा जाता है, इन AI सिस्टम को कुछ इस प्रकार से डिजाइन किया गया है की ये केवल एक पर्टिकुलर टास्क ही करें। उदाहरण के तौर पर इसमें वर्चुअल असिस्टेंट एप्पल का “सिरी” वीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का बहुत बढ़िया उदहारण है.
स्ट्रांग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस :-
इस प्रकार के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को जनरल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी कहा जाता है. इस प्रकार के AI सिस्टम में जनरलाइज्ड मनुष्य की बुद्धिमता होती है जिससे की ये समय आने पर अगर इसे कोई कठिनाई भरा काम दिया जाये तो ये आसानी से उसका समाधान निकाल सकता है. Turing Test को mathematician Alan Turing द्वारा सन 1950 में develop किया गया था जिसका इस्तमाल ये जानने के लिए किया गया था की क्या कंप्यूटर्स भी इंसानों के तरह सोच सकते हैं या नहीं।
Arend Hintze, जो की एक असिस्टेंट प्रोफेसर हैं-बायोलॉजी एंड कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग स्टेट यूनिवर्सिटी में। उन्होंने ही AI को चार हिस्सों में बाटा है जो की कुछ इस प्रकार हैं.
1)रिएक्टिव मशीन
इसका एक उदहारण है डीप ब्लू जो की एक आईबीएम चेस प्रोग्राम और जिसने Garry Kasparov को सन 1990s में हराया था। डीप ब्लू को कुछ इस प्रकार से डिजाइन किया गया है की ये चेस बोर्ड के पीसेज कोआईडेंटिफाई कर सकता है और उसके हिसाब से prediction कर सकता है। लेकिन इसकी अपनी कुछ मेमोरी नहीं है जिससे ये अपने पिछले मूव के बारे में याद नहीं रख सकता जो की ये बाद में इस्तमाल कर सके। ये पॉसिबल मूव को analyze करता है – इसके खुद की और इसके opponent की – और फिर ये उस हिसाब से सबसे बेहतर strategic move को चुनता है.डीप ब्लू और Google’s AlphaGO को narror purposes के लिए डिजाइन किया गया है और इसे आसानी से दुसरे situations में apply नहीं किया जा सकता।
2) लिमिटेड मेमोरी
इस प्रकार के AI सिस्टम अपने पास्ट एक्सपीरियंस को इस्तमाल कर अपने फ्यूचर डिसीजन को तय करते हैं। कुछ डिसीजन मेकिंग फंक्शन को जो की ऑटोमूव्स वाहनों में इस्तमाल किये जाते हैं उन्हें इसी प्रकार से डिजाइन किया गया है। ऐसे ही ऑब्जर्वेशंस को इस्तमाल कर भविष्य में होने वाले हादसों को कुछ हद तक रोका जा सकता है, जैसे की कार को दुसरे लाइन में चेंज करना।ये ऑब्जरवेशन हमेशा के लिए स्टोर नहीं होते।
3)मशीन लर्निंग
मशीन लर्निंग एक ऐसा विज्ञान है जिसमें कंप्यूटर बिना प्रोग्रामिंग के काम करता है। डीप लर्निंग मशीन लर्निंग का ही एक भाग है जिसमें predictive analytics को automation किया जाता है। मशीन लर्निंग के मुख्यत तीन एल्गोरिदम हैं : सुपरविजन लर्निंग, जहाँ की डाटा शीट्स को पेटर्न्स कहा जाता है और जिसे की नए डाटा शीट्स को लेबल करने में काम आता है। दूसरा है अनसुपरविजन लर्निंग, जहाँ की डाटा शीट्स को लेबल नहीं किया जाता बल्कि उन्हें शार्ट किया जाता है,उनके समानता और असामनता के आधार पर। तीसरा है इनफॉर्मेंट लर्निंग जहाँ डाटा शीट्स को लेबल नहीं किया जाता पर कुछ एक्शन और ज्यादा एक्शन करने के बाद, AIसिस्टम को फीडबैक दिया जाता है।
4)मशीन विजन
मशीन विजन एक ऐसा विज्ञानं है जिसकी मदद से हम कंप्यूटर्स को देखने के काबिल कर सकते हैं। मशीन विजन में कंप्यूटर विजुअल इंफॉर्मेशन को कैमरे की मदद से कैप्चर करता है और analyze करती है, इसके साथ साथ यह डिजिटल सिगनल को एनालॉग सिगनल में परिवर्तित करता है और इसका इस्तेमाल फोटो स्टूडियो में भी होता है। इसकी इंसानी आँखों के साथ भी तुलना की जाती है, लेकिन मशीन विजन की कोई सीमा नहीं है और ये दीवारों के पार भी देख सकते हैं, इसलिए इनका काफी इस्तमाल चिकित्सक में भी होता है।
रोबोटिक्स एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें की रोबोट्स की डिजाइन औरमैन्युफैक्चरिंग में ज्यादा फोकस किया जाता है. ऐसे काम जो की हम इंसानों के लिए बहुत ही मुस्किल हैं वहां हम रोबोट्स को इस्तमाल में लाते हैं, क्यूंकि वो कठिन से कठिन काम बड़ी आसानी से कर लेते हैं और वो भी बिना किसी गलती के। उदाहंरण के तौर पर हम उनका इस्तमाल कार बनाने और उनके पूर्जों को जोड़ने में करते हैं.
AI का सबसे बड़ा इस्तमाल हेल्थ केयर इंडस्ट्री में होता है. यहाँ सबसे बड़ा चैलेंज ये है की कैसे हम मरीजों का बेहतर इलाज कर सकें और वो भी कम से कम लागत में। इसलिए अब कंपनीज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तमाल अस्पतालों में कर रही है जिससे की बेहतर और जल्दी मरीजों का इलाज सुचारू रूप से हो सके। ऐसे ही एक बहुत ही जानी-मानी हेल्थ केयर टेक्नोलॉजी है और जिसका नाम है IBM Watson. इसके साथ साथ अब कामन बीमारियों के लिए हेल्थ असिस्टेंट भी आ चुके हैं जिसकी मदद से अब आम लोग अपने बिमार्रियों का इलाज करवा सकते हैं। इन सभी मशीनों के इस्तमाल से अब हेल्थ इंडस्ट्री में एक बहुत ही बड़ी क्रांति आने वाली है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तमाल मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज में भी खूब जोरों से है। पहले जिस काम को करने के लिए सेकड़ों लोग लगते थे वहीँ आज एक मशीन के मदद से वही काम बहुत जल्दी और बेहतर किया जा रहा है।
दिन-बदिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तमाल बढ़ते ही जा रहा है. हम मनुष्य धीरे धीरे ऐसे मशीनों के ज्यादा आदि बनते जा रहे हैं। हम हमारी जरूरतों को पूरा करने की कोशिश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को और भी ज्यादा शक्तिशाली और ज्यादा एडवांस कर रहे हैं ताकि ये हमारे कठिन से कठिन काम कर सके। ऐसा होने से हमारे जाने अनजाने में ये मशीन और भी ज्यादा ताकतवर बनती जा रहे हैं और इनमें सोचने की शक्ति भी धीरे धीरे बढ़ रही है जिससे ये किसी भी परिस्तिथि में खुद को ढाल सकती हैं और ये हमारे लिए अच्छी बात नहीं है.
वो दिन दूर नहीं जब ये हमारे आदेश का पालन भी न करें और अपने मन मुताबीक ही काम करें। ऐसे में मनुष्य समाज को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। ये हमारे सभी इंडस्ट्रीज में अपनी जड़ पहले से ही गाड़ चुकी हैं और हम इनके बहुत आदि बन चुके हैं जिससे इनके बिना हमारा काम हमें करने में भी तकलीफ हो रही है। सुनने में भले ही ये बात थोडी अटपटी लगे लेकिन ये 100% सही है। मेरा मानना यह है कि हमें मशीनों पर निर्भर नहीं होना चाहिए.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने समाज में अपनी जगह बना ली है 2035 तक खुद से सोचने वाले रोबोट्स हमारे बीच होंगे जोकि हम इंसानों की तरह सोचेंगे समझेंगे।
जापान में यह तकनीक लगभग आ चुकी है इससे हम मनुष्यों को काम में राहत तो मिलेगी लेकिन इसके दुष्परिणाम भी बहुत से होंगे.
About Author:-
नाम:- सुशील कुमार मालवीया
कॉलेज:- जवाहरलाल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी विद्या विहार बोरावाँ ,कसरावद ,खरगोन (म.प्र)
कक्षा:-final year (कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग)
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