राकेश अचल:-
गोवा और कर्नाटक में इन दिनों जो हो रहा है वो भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की न पहली घटना है और न अभूतपूर्व ,इसलिए इस पर चींटी होनेके बजाय इस बात पर संसद को बहस करना चाहिए कि देश में सत्ता के लिए होने वाले ये नाटक आखिर कैसे रोके जाएँ ?जनता अपने प्रतिनधि चुनती है लेकिन उन्हें न दल बदलने का अधिकार देती है और न अपने पद से इस्तीफा देने का ,लेकिन चुने हुए प्रतिनिधि हर सदन में ये दोनों काम करते हैं ।
देश में बहुचर्चित आयाराम-गयाराम काण्ड के बाद आया दल-बदल क़ानून लोकतंत्र को बचाने में नाकाम रहा है,इसलिए सबसे पहले इसमें संशोधन की जरूरत है ।बेहतर हो कि सदन मतदाता को दो नए अधिकार दे।एक तो भ्र्ष्ट और अक्षम साबित होने पर मतदाता अपने निर्वाचित प्रतिनिधि को वापस बुला सके और दूसरा चुने हुए प्रतिनिधियों से दल बदलने और सदन से इस्तीफा देने पर रोक लगे। निर्वाचित प्रतिनिधि की सदस्य्ता उसके रुग्ण होने या निधन होने पर ही समाप्त मानी जाये। दल-बदल की सजा आजन्म चुनाव लड़ने पर पाबंदी होना चाहिए ।
हमारा संविधान समय की जरूरत के हिसाब से बदलता आया है।हमारे जन प्रतिनिधित्व क़ानून में भी अब तक अनेक संशोधन हुए हैं और आगे भी ये सिलसिला जारी रह सकता है ।चुनावों को कम खर्चीला,निष्पक्ष और असंदिग्ध बनाने के उपायों के साथ ही अब दल-बदल को हतोत्साहित करने के लिए नए क़ानून की महती जरूरत है ।अभी सदन के प्रमुख अपनी गेंद अदालत के पाले में डालते हैं और अदालत अपनी गेंद सदन प्रमुख के पाले में ।कर्नाटक के मामले में ये हो ही रहा है ।इसलिए बेहतर है कि इस समस्या को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाये ।हमारी नयी संसद ने अनुदान मांगों पर लगातार १८ घंटे बैठकर ये साबित कर दिया है कि सत्रहवीं लोकसभा में सदस्य आशा के अनुरूप गंभीर हैं,मुझे पूरा यकीन है कि यदि चुनाव सुधारों और दल-बदल रोकने के लिए सदन में बहस शुरू हो जाए तो कोई न कोई नतीजा निकल ही आएगा ।
दल-बदल पर नए अंकुश लगाना कठिन सिर्फ इसलिए ये क्योंकि दल-बसदल सभी राजनीतिक दलों का सत्ता प्राप्ति का प्रमुख और प्रिय हथियार है ।सत्ता तक अनैतिक रास्तों से पहुंचना आसान होता है।चुने हुए घोड़े खरीदना आज सबसे आसान है ,इसलिए इस कारोबार को रोकने के लिए सभी दल आम राय आसानी से तो नहीं बनाएंगे लेकिन इसके लिए प्रयास करना चाहिए। मै तो कहता हूँ कि दल-बदल करने वाले जन प्रतिनिधियों का उनके कश्तर के मतदाता सार्वजनिक बहिष्कार करें।इस्तीफा देने वालों से चुनाव आयोग चुनाव पर हुआ खर्च वसूल करे तो सबकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी ।क्योंकि कर्नाटक और गोवा की हवा अभी ठहरने वाली नहीं हैं।बहुत से राज्यों में सत्ता हथियाने के लिए यहीं हथकंडों का इस्तेमाल होने वाला है
दुर्भाग्य ये है कि अतीत में कांग्रेस ने सत्ता प्राप्ति के लिए जो पगडंडियां बनाई थीं उन्हें भाजपा ने राजपथ में बदल लिया है ।इसलिए कांग्रेस और भाजपा इस अनैतिकता के लिए समान रूप से दोषी हैं और बिकने वाले तो महापाप करते ही हैं ।इस महापाप से लोकतंत्र की रक्षा करने कल लिए सभी को आगे आना चाहिए।पूरे देश में लोकतंत्र के लिए काम करने वाले लोग दल-बदल और ‘हार्स ट्रेडिंग’ के खिलाफ जन जागरण करने तो बात बन सकती है ।देखिये आने वाले समय में शायद इस दिशा में कभी कुछ हो जाए ।
@ राकेश अचल जी की फेसबुक वाल से